श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 25: भगवान् अनन्त की महिमा  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  5.25.2 
 
 
यस्येदं क्षितिमण्डलं भगवतोऽनन्तमूर्ते: सहस्रशिरस एकस्मिन्नेव शीर्षणि ध्रियमाणं सिद्धार्थ इव लक्ष्यते ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा – भगवान् अनंत के सहस्रों फणों में से एक फण के ऊपर रखा हुआ यह विशाल ब्रह्माण्ड श्वेत सरसों के दाने के समान प्रतीत होता है। भगवान् अनंत के फण की तुलना में ब्रह्माण्ड नगण्य है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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