श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 25: भगवान् अनन्त की महिमा  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  5.25.14 
 
 
एता ह्येवेह नृभिरुपगन्तव्या गतयो यथाकर्मविनिर्मिता यथोपदेशमनुवर्णिता: कामान् कामयमानै: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, गुरुदेव ने मुझे जो बताया था उसी प्रकार के सकाम कर्मों और कामनाओं के अनुसार बद्धजीवों की सृष्टि मैंने आपसे की है। भौतिक सुखों के लिए लालायित बद्धजीव विभिन्न लोकों में अनेक स्थितियाँ प्राप्त करते हैं और इस तरह भौतिक सृष्टि के चक्र में बँधे रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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