श्रीशुक उवाच
तस्य मूलदेशे त्रिंशद्योजनसहस्रान्तर आस्ते या वै कला भगवतस्तामसी समाख्यातानन्त इति सात्वतीया द्रष्टृदृश्ययो: सङ्कर्षणमहमित्यभिमानलक्षणं यं सङ्कर्षणमित्याचक्षते ॥ १ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित से कहा- हे राजन! पाताल लोक से २,४०,००० मील नीचे श्री भगवान का एक अन्य अवतार निवास करते हैं। वे भगवान अनंत या भगवान संकर्षण कहलाते हैं और भगवान विष्णु के अंश हैं। वे सदैव दिव्य पद पर विराजमान रहते हैं, किंतु तमोगुणी देवता भगवान शिव के आराध्य होने के कारण कभी-कभी तामसी कहलाते हैं। भगवान अनंत सभी बद्धजीवों के अहं और तमोगुण के प्रमुख देवता हैं। जब बद्धजीव यह सोचता है कि यह संसार भोग्य है और मैं उसका भोक्ता हूँ, तो यह जीवन-दृष्टि संकर्षण द्वारा प्रेरित होती है। इस प्रकार संसारी बद्धजीव स्वयं को ही परमेश्वर मानने लगता है।