एतेषु हि बिलस्वर्गेषु स्वर्गादप्यधिककामभोगैश्वर्यानन्दभूतिविभूतिभि: सुसमृद्धभवनोद्यानाक्रीडविहारेषु दैत्यदानवकाद्रवेया नित्यप्रमुदितानुरक्तकलत्रापत्यबन्धुसुहृदनुचरा गृहपतय ईश्वरादप्यप्रतिहतकामा मायाविनोदा निवसन्ति ॥ ८ ॥
अनुवाद
बिल स्वर्ग (नीचे के स्वर्ग) कहलाने वाले इन सातों लोकों में सुन्दर घर, बाग और ऐशो-आराम के लिए बाग़-बगीचे हैं। इन स्थानों का ऐश्वर्य स्वर्गलोक से भी अधिक है क्योंकि असुरों के सुख-विलास, धन-दौलत और प्रभाव का बहुत ऊँचा दर्जा है। इन लोकों के दानव, दैत्य और नाग नामक अधिकांश निवासी गृहस्थ की तरह रहते हैं। उनकी पत्नियाँ, बच्चे, मित्र और समाज मायावी भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं। चाहे देवताओं का सुख कभी-कभी बाधित हो जाए, लेकिन इन लोकों के निवासी बिना किसी बाधा के जीवन का आनंद लेते हैं। इसलिए उन्हें मायावी सुख-सुविधाओं से बहुत अधिक जुड़ा हुआ माना जाता है।