श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 24: नीचे के स्वर्गीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  5.24.31 
 
 
ततोऽधस्तात्पाताले नागलोकपतयो वासुकिप्रमुखा: शङ्खकुलिकमहाशङ्खश्वेतधनञ्जयधृतराष्ट्रशङ्खचूडकम्बलाश्वतरदेवदत्तादयो महाभोगिनो महामर्षा निवसन्ति येषामु ह वै पञ्चसप्तदशशतसहस्रशीर्षाणां फणासु विरचिता महामणयो रोचिष्णव: पातालविवरतिमिरनिकरं स्वरोचिषा विधमन्ति ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  रसातल के नीचे पाताल अथवा नागलोक नामक एक और लोकाप्त है जहाँ अनेक आसुरी सर्प और नागलोक के स्वामी निवास करते हैं, जैसे कि शंख, कुलिक, महाशंख, श्वेत, धनञ्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अश्वतर और देवदत्त। इनमें से वासुकि प्रमुख है। वे अत्यधिक कुपित रहते हैं और उनमें से कुछ के पाँच, कुछ के सात, कुछ के दस, कुछ के सौ और अन्य के हजार फन हैं। इन फनों में कीमती रत्न सुशोभित हैं और इन रत्नों से निकलने वाली रोशनी बिल-स्वर्ग के पूरे लोकाप्त को प्रकाशित करती है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध पांच के अंतर्गत चौबीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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