श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 24: नीचे के स्वर्गीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  5.24.30 
 
 
ततोऽधस्ताद्रसातले दैतेया दानवा: पणयो नाम निवातकवचा: कालेया हिरण्यपुरवासिन इति विबुधप्रत्यनीका उत्पत्त्या महौजसो महासाहसिनो भगवत: सकललोकानुभावस्य हरेरेव तेजसा प्रतिहतबलावलेपा बिलेशया इव वसन्ति ये वै सरमयेन्द्रदूत्या वाग्भिर्मन्त्रवर्णाभिरिन्द्राद्ब‍िभ्यति ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  महातल के नीचे रसातल लोक है, जहाँ दिति और दनु के राक्षस पुत्र रहते हैं। उन्हें पणि, निवात- कवच, कालेय और हिरण्य-पुरावासी (हिरण्य-पुरा में रहने वाले) कहा जाता है। ये देवताओं के शत्रु हैं और साँपों की तरह बिलों में रहते हैं। जन्म से ही वे बहुत शक्तिशाली और क्रूर होते हैं। वे अपनी शक्ति पर गर्व करते हैं, लेकिन भगवान के सुदर्शन चक्र से हमेशा हार जाते हैं। जब इंद्र की दूत सरमा एक विशेष शाप देती है, तो रसातल के नाग- राक्षस इंद्र से बहुत डर जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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