तस्यानुचरितमुपरिष्टाद्विस्तरिष्यते यस्य भगवान् स्वयमखिलजगद्गुरुर्नारायणो द्वारि गदापाणिरवतिष्ठते निजजनानुकम्पितहृदयो येनाङ्गुष्ठेन पदा दशकन्धरो योजनायुतायुतं दिग्विजय उच्चाटित: ॥ २७ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी कहने लगे - हे राजन! बलि महाराज के चरित्र का गुणगान मैं कैसे करूँ? तीनों लोकों के स्वामी भगवान, जो अपने भक्तों पर अति दयालु हैं, बलि महाराज के द्वार पर गदा धारण किए खड़े रहते हैं। जब पराक्रमी असुर रावण बलि महाराज से विजय पाने के लिए आया था, तब वामनदेव ने अपने पैर के अँगूठे से उसे अस्सी हजार मील दूर उछाल दिया था। मैं बलि महाराज के चरित्र तथा कार्यों का विस्तृत वर्णन आगे (आठवें स्कंध में) करूँगा।