श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 24: नीचे के स्वर्गीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.24.13 
 
 
न वा एतेषु वसतां दिव्यौषधिरसरसायनान्नपानस्‍नानादिभिराधयो व्याधयो वलीपलितजरादयश्च देहवैवर्ण्यदौर्गन्ध्यस्वेदक्लमग्लानिरिति वयोऽवस्थाश्च भवन्ति ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  इन लोकों के निवासी जड़ी-बूटियों से बने रस और रसायन का पान और स्नान करते हैं। इस वजह से वे चिंताओं और व्याधियों से मुक्त रहते हैं। उनके बाल सफेद नहीं होते, न झुर्रियाँ पड़ती हैं और न ही वे अपंग होते हैं। उनकी चमक कभी कम नहीं होती, उनके पसीने से दुर्गंध नहीं आती है और न ही उन्हें थकान, शक्ति की कमी या बुढ़ापे के कारण उत्साह की कमी होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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