एवं नव कोटय एकपञ्चाशल्लक्षाणि योजनानां मानसोत्तरगिरिपरिवर्तनस्योपदिशन्ति तस्मिन्नैन्द्रीं पुरीं पूर्वस्मान्मेरोर्देवधानीं नाम दक्षिणतो याम्यां संयमनीं नाम पश्चाद्वारुणीं निम्लोचनीं नाम उत्तरत: सौम्यां विभावरीं नाम तासूदयमध्याह्नास्तमयनिशीथानीति भूतानां प्रवृत्तिनिवृत्तिनिमित्तानि समयविशेषेण मेरोश्चतुर्दिशम् ॥ ७ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा- हे राजन, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, विद्वानों का कहना है कि मानसोत्तर पर्वत के चारों ओर सूर्य के परिक्रमा पथ की लंबाई 95,100,000 योजन है। मानसोत्तर पर्वत पर, सुमेरु पर्वत के पूर्व में, देवधानी नामक स्थान है जो इंद्र देव का निवास है। इसी तरह दक्षिण में संयमनी नाम का स्थान है जिस पर यमराज का अधिकार है, पश्चिम में निम्लोचनी नाम का स्थान है जिस पर वरुण का अधिकार है और उत्तर में विभावरी नाम का स्थान है जिस पर चंद्र देवता का अधिकार है। इन सभी स्थानों पर मेरु के चारों ओर विशिष्ट समय के अनुसार सूर्योदय, मध्याह्न, सूर्यास्त और मध्यरात्रि होती रहती है, जिसके अनुसार सभी जीव अपने कार्यों में लगे रहते हैं या उनसे निवृत्त होते हैं।