श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 21: सूर्य की गतियों का वर्णन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  5.21.12 
 
 
एवं मुहूर्तेन चतुस्त्रिंशल्लक्षयोजनान्यष्टशताधिकानि सौरो रथस्त्रयीमयोऽसौ चतसृषु परिवर्तते पुरीषु ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार, त्रयीमय, अर्थात् ॐ भूर्भुव स्वः शब्दों से पूजित सूर्यदेव का रथ, ऊपर वर्णित चारों पुरियों से होकर एक मुहूर्त में 3,400,800 योजन [27,206,400 मील] की गति से घूमता रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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