एवं मुहूर्तेन चतुस्त्रिंशल्लक्षयोजनान्यष्टशताधिकानि सौरो रथस्त्रयीमयोऽसौ चतसृषु परिवर्तते पुरीषु ॥ १२ ॥
अनुवाद
इस प्रकार, त्रयीमय, अर्थात् ॐ भूर्भुव स्वः शब्दों से पूजित सूर्यदेव का रथ, ऊपर वर्णित चारों पुरियों से होकर एक मुहूर्त में 3,400,800 योजन [27,206,400 मील] की गति से घूमता रहता है।