योऽसौ गुहप्रहरणोन्मथितनितम्बकुञ्जोऽपि क्षीरोदेनासिच्यमानो भगवता वरुणेनाभिगुप्तो विभयो बभूव ॥ १९ ॥
अनुवाद
कार्तिकेय के हथियारों से क्रौंच पर्वत की ढलानों पर उगने वाली वनस्पतियाँ भले ही नष्ट हो गई थीं, पर यह पर्वत निर्भीक हो गया है क्योंकि यह हमेशा चारों ओर से क्षीरसागर द्वारा सिंचित रहता है और वरुण देव द्वारा संरक्षित रहता है।