का त्वं चिकीर्षसि च किं मुनिवर्य शैले
मायासि कापि भगवत्परदेवताया: । विज्ये बिभर्षि धनुषी सुहृदात्मनोऽर्थेकिं वा मृगान्मृगयसे विपिने प्रमत्तान् ॥ ७ ॥
अनुवाद
राजकुमार ने गलती से अप्सरा से कहा- हे श्रेष्ठ संत, तुम कौन हो? इस पहाड़ पर क्यों आई हो और तुम्हारा क्या उद्देश्य है? क्या तुम भगवान की माया हो? तुम ये बिना डोरी वाले दो धनुष क्यों रखे हुए हो? क्या इनसे तुम्हारा कोई उद्देश्य है या अपने दोस्त के लिए इन्हें रखा है? शायद तुम इन्हें इस जंगल के पागल जानवरों को मारने के लिए रखे हुए हो।