श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  5.19.7 
 
 
न जन्म नूनं महतो न सौभगं
न वाङ्‌न बुद्धिर्नाकृतिस्तोषहेतु: ।
तैर्यद्विसृष्टानपि नो वनौकस-
श्चकार सख्ये बत लक्ष्मणाग्रज: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  उच्चकुल में जन्म लेना, शारीरिक सौंदर्य, वाकचातुर्य, तेज बुद्धि या श्रेष्ठ जाति या राष्ट्र जैसे भौतिक गुणों के आधार पर कोई भी भगवान रामचंद्र से मित्रता स्थापित नहीं कर सकता। इन गुणों की आवश्यकता राम के साथ मित्रता के लिए नहीं है, अन्यथा हम जैसे असभ्य वनवासी, जिन्हें उच्च कुल में जन्म नहीं मिला, जिनमें रूप-रंग नहीं है और जो भद्र पुरुषों की तरह बात भी नहीं कर सकते, उनको भगवान रामचंद्र अपने मित्रों के रूप में क्यों स्वीकार करते?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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