नारद पंचरात्र नामक अपने ग्रंथ में भगवान नारद ने विस्तारपूर्वक वर्णन किया है कि किस प्रकार ज्ञान और योग अभ्यास के माध्यम से जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य, भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने भगवान की महिमा का भी वर्णन किया है। महर्षि नारद ने इस दिव्य साहित्य का उपदेश सावर्णि मनु को प्रदान किया, ताकि वह भारतवर्ष के उन निवासियों को भगवान की भक्ति प्राप्त करने की शिक्षा दे सकें जो दृढ़ता से वर्णाश्रम धर्म के नियमों का पालन करते हैं। इस प्रकार, नारद मुनि भारतवर्ष के अन्य निवासियों के साथ मिलकर सदैव नर-नारायण की सेवा करते हैं और निम्नलिखित मंत्र का जप करते हैं।