श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 18: जम्बूद्वीप के निवासियों द्वारा भगवान् की स्तुति  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  5.18.9 
 
 
स्वस्त्यस्तु विश्वस्य खल: प्रसीदतां
ध्यायन्तु भूतानि शिवं मिथो धिया ।
मनश्च भद्रं भजतादधोक्षजे
आवेश्यतां नो मतिरप्यहैतुकी ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  इस संपूर्ण जगत में मंगल हो और सभी ईर्ष्यालु लोग शांत हो जाएं। सभी जीव भक्ति-योग का अभ्यास करके शांत हो जाएं, क्योंकि भक्ति करने से वे एक-दूसरे के कल्याण के बारे में सोच सकेंगे। इसलिए हम सब भगवान श्री कृष्ण की परम भक्ति में तन्मय होकर उनके विचारों में ही लीन रहें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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