श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 18: जम्बूद्वीप के निवासियों द्वारा भगवान् की स्तुति  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  5.18.7 
 
 
हरिवर्षे चापि भगवान्नरहरिरूपेणास्ते । तद्रूपग्रहणनिमित्तमुत्तरत्राभिधास्ये । तद्दयितं रूपं महापुरुषगुणभाजनो महाभागवतो दैत्यदानवकुलतीर्थीकरणशीलाचरित: प्रह्लादोऽव्यवधानानन्यभक्तियोगेन सह तद्वर्षपुरुषैरुपास्ते इदं चोदाहरति ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा - हे राजन! भगवान नृसिंह हरिवर्ष नामक भू-भाग में निवास करते हैं। मैं श्रीमद् भागवत के सातवें अध्याय में आपको यह बताऊंगा कि प्रह्लाद महाराज ने किस प्रकार भगवान को नृसिंह अवतार धारण करने के लिए बाध्य किया था। प्रह्लाद महाराज भगवान के अनन्य भक्तों में सबसे श्रेष्ठ हैं और महापुरुषों के अनुरूप सभी उत्तम गुणों के भंडार हैं। उनके चरित्र और कर्मों से उनके दैत्य वंश के सभी पतित जनों का उद्धार हुआ है। उन्हें भगवान नृसिंह देव अत्यंत प्रिय हैं। इस प्रकार प्रह्लाद महाराज अपने सभी सेवकों और हरिवर्ष के सभी निवासियों के साथ भगवान नृसिंह देव की पूजा निम्नलिखित मंत्रोच्चारण द्वारा करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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