श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 18: जम्बूद्वीप के निवासियों द्वारा भगवान् की स्तुति  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  5.18.30 
 
 
ॐ नमो भगवते अकूपाराय सर्वसत्त्वगुणविशेषणायानुपलक्षितस्थानाय नमो वर्ष्मणे नमो भूम्ने नमो नमोऽवस्थानाय नमस्ते ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, कच्छप रूप में अवतरित आपको मेरा सादर नमस्कार। आप समस्त दिव्य गुणों के मूल हैं। भौतिकता से पूर्णत: परे रहकर आप परम सत्त्व में स्थित हैं। आप जल में सदा संचरण करते रहते हैं, किन्तु किसी को आपका पता नहीं चल पाता। इसीलिए मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ। आपकी दिव्यता के कारण, आप भूत, वर्तमान और भविष्य के बंधनों से मुक्त हैं। आप सर्वत्र और प्रत्येक वस्तु के आधार के रूप में उपस्थित हैं। अतः मैं बार-बार आपको सादर नमस्कार करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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