श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 18: जम्बूद्वीप के निवासियों द्वारा भगवान् की स्तुति  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  5.18.23 
 
 
स त्वं ममाप्यच्युत शीर्ष्णि वन्दितं
कराम्बुजं यत्त्वदधायि सात्वताम् ।
बिभर्षि मां लक्ष्म वरेण्य मायया
क ईश्वरस्येहितमूहितुं विभुरिति ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे अच्युत, आपका कमल-सा हाथ सभी शुभ आशीर्वादों का स्रोत है। इसीलिए आपके शुद्ध भक्त इसकी पूजा करते हैं और आप बहुत ही दयालुता से अपना हाथ उनके सिर पर रखते हैं। मेरी भी यही इच्छा है कि आप मेरे सिर पर अपना हाथ रखें, यद्यपि आप पहले से ही अपने सीने पर श्रीलक्ष्म के रूप में मुझे धारण करते हैं, लेकिन मैं इस सम्मान को अपने लिए एक प्रकार का झूठा गौरव मानती हूं। आप अपनी वास्तविक दया अपने भक्तों पर दिखाते हैं, मुझ पर नहीं। निस्संदेह, आप सर्वोच्च पूर्ण नियंत्रक हैं, और कोई भी आपके उद्देश्यों को नहीं समझ सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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