श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 18: जम्बूद्वीप के निवासियों द्वारा भगवान् की स्तुति  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  5.18.15 
 
 
केतुमालेऽपि भगवान् कामदेवस्वरूपेण लक्ष्म्या: प्रियचिकीर्षया प्रजापतेर्दुहितृणां पुत्राणां तद्वर्षपतीनां पुरुषायुषाहोरात्रपरिसङ्ख्यानानां यासां गर्भा महापुरुषमहास्त्रतेजसोद्वेजितमनसां विध्वस्ता व्यसव: संवत्सरान्ते विनिपतन्ति ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा - केतुमालवर्ष नामक भूमि के क्षेत्र में भगवान विष्णु अपने भक्तों के संतोष के लिए कामदेव के रूप में रहते हैं। इन भक्तों में लक्ष्मीजी, प्रजापति संवत्सर और संवत्सर के सभी पुत्र और पुत्रियाँ शामिल हैं। प्रजापति की पुत्रियों को रात का और उनके पुत्रों को दिन का नियामक देवता माना जाता है। प्रजापति की सन्तानों की संख्या 36,000 है जो मनुष्य के जीवनकाल के प्रत्येक दिन और रात की संख्या के बराबर है। हर साल के अंत में प्रजापति की पुत्रियाँ श्री भगवान के चक्र को देखकर बहुत उद्वेलित हो जाती हैं और इससे उन सभी का गर्भपात हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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