जो व्यक्ति पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान वासुदेव के लिए शुद्ध भक्ति भावना जागृत कर लेता है, उसके शरीर में सभी देवता और उनके महान गुण, जैसे धर्म, ज्ञान और त्याग प्रकट हो जाते हैं। इसके विपरीत, जो व्यक्ति भक्ति से रहित है और भौतिक कार्यों में व्यस्त रहता है, उसमें कोई अच्छे गुण नहीं आते। भले ही कोई व्यक्ति योगाभ्यास में कितना भी कुशल क्यों न हो और अपने परिवार और रिश्तेदारों का भली-भाँति भरण पोषण करता हो, वह अपनी मनमानी कल्पनाओं के आधार पर भगवान की बाहरी शक्ति की सेवा में तत्पर होता है। ऐसे व्यक्ति में भला अच्छे गुण कैसे आ सकते हैं?