एवं माल्यवच्छिखरान्निष्पतन्ती ततोऽनुपरतवेगा केतुमालमभि चक्षु: प्रतीच्यां दिशि सरित्पतिं प्रविशति ॥ ७ ॥
अनुवाद
गंगा की चक्षु नामक शाखा माल्यवान पर्वत की चोटी पर गिरती है और वहाँ से गिरकर केतुमाल वर्ष में प्रवेश करती है। केतुमाल वर्ष से निरंतर बहती हुई गंगा पश्चिम की ओर लवण सागर तक पहुँचती है।