श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 17: गंगा-अवतरण  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  5.17.4 
 
 
ततोऽनेकसहस्रकोटिविमानानीकसङ्कुलदेवयानेनावतरन्तीन्दुमण्डलमावार्य ब्रह्मसदने निपतति ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  ध्रुवलोक के आस-पास के सातों लोक को शुद्ध करने के उपरांत, गंगा का जल करोड़ों देवताओं के विमानों से अंतरिक्ष में ले जाया जाता है। इसके बाद यह चंद्रलोक तक पहुँचता है और बहते हुए मेरु पर्वत पर स्थित ब्रह्मा के निवास स्थान तक पहुँच जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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