श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 17: गंगा-अवतरण  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  5.17.18 
 
 
भजे भजन्यारणपादपङ्कजंभगस्य कृत्‍स्‍नस्य परं परायणम् ।
भक्तेष्वलं भावितभूतभावनंभवापहं त्वा भवभावमीश्वरम् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आप एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी आराधना की जानी चाहिए, क्योंकि आप ही पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, समस्त ऐश्वर्यों के भंडार हैं। आपके पवित्र चरण-कमल आपके सभी भक्तों की एकमात्र सुरक्षा हैं, जिन्हें आप अपने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर संतुष्ट करते हैं। हे प्रभु, आप अपने भक्तों को भौतिक अस्तित्व के चंगुल से मुक्ति दिलाते हैं, परन्तु आपकी इच्छा के अनुसार, जो लोग आपकी भक्ति नहीं करते, वे भौतिक दुनिया में उलझे रहते हैं। कृपया मुझे अपने शाश्वत सेवक के रूप में स्वीकार करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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