श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 17: गंगा-अवतरण  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  5.17.11 
 
 
तत्रापि भारतमेव वर्षं कर्मक्षेत्रमन्यान्यष्ट वर्षाणि स्वर्गिणां पुण्यशेषोपभोगस्थानानि भौमानि स्वर्गपदानि व्यपदिशन्ति ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  नव वर्षों में से, भारतवर्ष के नाम से जाना जाने वाला भूभाग कर्मक्षेत्र माना जाता है। विद्वान और संत कहते हैं कि अन्य आठ वर्ष बहुत ही पुण्यात्माओं के लिए हैं। जब वो स्वर्गलोक से वापस आते हैं, तो उन आठ भू-क्षेत्रों में अपने शेष पुण्यों का फल भोगते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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