श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 16: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  5.16.4 
 
 
ऋषिरुवाच
न वै महाराज भगवतो मायागुणविभूते: काष्ठां मनसा वचसा वाधिगन्तुमलं विबुधायुषापि पुरुषस्तस्मात्प्राधान्येनैव भूगोलकविशेषं नामरूप मानलक्षणतो व्याख्यास्याम: ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  ऋषिश्रेष्ठ शुकदेव गोस्वामी बोले, हे राजन्, भगवान की माया की सीमा नहीं है। यह भौतिक जगत तीन गुणों सत्त्व, रज और तम का रूपान्तरण है; फिर भी ब्रह्मा जितनी लंबी आयु पाकर भी इसकी पूरी व्याख्या करना संभव नहीं है। इस भौतिक जगत में कोई भी पूर्ण नहीं है और अपूर्ण मनुष्य सतत चिन्तन के बाद भी इस भौतिक ब्रह्माण्ड का सही वर्णन नहीं कर सका। तो भी, हे राजन्, मैं भूगोलक जैसे प्रमुख भूखण्डों की उनके नामों, रूपों, प्रमापों तथा विविध लक्षणों सहित व्याख्या करने का प्रयास करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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