श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 16: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  5.16.2 
 
 
तत्रापि प्रियव्रतरथचरणपरिखातै: सप्तभि: सप्त सिन्धव उपक्‍ल‍ृप्ता यत एतस्या: सप्तद्वीपविशेषविकल्पस्त्वया भगवन् खलु सूचित एतदेवाखिलमहं मानतो लक्षणतश्च सर्वं विजिज्ञासामि ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भगवन्, महाराज प्रियव्रत के रथ के घूमते हुए पहियों के कारण सात खाइयाँ बनीं, जिससे सात समुद्रों की उत्पत्ति हुई। इन सात समुद्रों के कारण ही पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। आपने इन द्वीपों के माप, नाम और विशेषताओं का सामान्य वर्णन किया है। मैं इन द्वीपों के बारे में विस्तार से जानना चाहता हूँ। कृपया मेरी इच्छा पूरी करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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