यस्याध्वरे भगवानध्वरात्मामघोनि माद्यत्युरुसोमपीथे ।
श्रद्धाविशुद्धाचलभक्तियोग-समर्पितेज्याफलमाजहार ॥ १२ ॥
अनुवाद
महाराज गय के यज्ञों में सोम नामक एक नशीली वस्तु का अत्यधिक प्रयोग होता था। राजा इंद्र इन यज्ञों में आते थे और इतनी मात्रा में सोमरस पीते थे कि वह मदमस्त हो जाते थे। भगवान विष्णु, जो कि यज्ञ-पुरुष हैं, भी इन यज्ञों में आते थे और यज्ञ में उन्हें समर्पित किए गए फल को स्वीकार करते थे।