श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 15: राजा प्रियव्रत के वंशजों का यश-वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  5.15.11 
 
 
छन्दांस्यकामस्य च यस्य कामान्दुदूहुराजह्रुरथो बलिं नृपा: ।
प्रत्यञ्चिता युधि धर्मेण विप्रायदाशिषां षष्ठमंशं परेत्य ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि महाराज गय में इन्द्रिय संतुष्टि के लिए व्यक्तिगत रूप से कोई इच्छा नहीं थी, किन्तु वैदिक अनुष्ठानों के पालन के कारण उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती रहती थीं। महाराज गय को जिन राजाओं से युद्ध करना पड़ता, वे धर्मयुद्ध के लिए विवश हो जाते थे। वे महाराज गय के युद्ध से बहुत सन्तुष्ट रहते और उन्हें सभी प्रकार की भेंटें दिया करते थे। इसी प्रकार उनके राज्य के सभी ब्राह्मण उनके उदार दानों से अत्यन्त सन्तुष्ट रहते थे। परिणामस्वरूप, ब्राह्मणों ने अगले जन्म में प्राप्त होने के लिए राजा गय को अपने पुण्यकर्मों का छठा भाग सहर्ष प्रदान किया था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.