श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 15: राजा प्रियव्रत के वंशजों का यश-वर्णन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  5.15.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
भरतस्यात्मज: सुमतिर्नामाभिहितो यमु ह वाव केचित्पाखण्डिन ऋषभपदवीमनुवर्तमानं चानार्या अवेदसमाम्नातां देवतां स्वमनीषया पापीयस्या कलौ कल्पयिष्यन्ति ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा—महाराज भरत के पुत्र सुमति ने ऋषभदेव के मार्ग का अनुसरण किया, किन्तु कलियुग में कुछ पाखंडी लोग उन्हें साक्षात् भगवान् बुद्ध मानने लगेंगे। वस्तुत: ये पाखंडी नास्तिक और दुश्चरित्र लोग हैं, जो वैदिक नियमों का पालन काल्पनिक तथा अप्रसिद्ध ढंग से अपने कर्मों की पुष्टि के लिए करेंगे। इस प्रकार ये पापात्मा सुमति को भगवान् बुद्धदेव के रूप में स्वीकार करेंगे और इस मत का प्रवर्तन करेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति को सुमति के नियमों का पालन करना चाहिए। इस प्रकार वे अपनी कोरी कल्पना के कारण रास्ते से भटक जाएँगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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