श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 14: भौतिक संसार भोग का एक विकट वन  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  5.14.8 
 
 
अथ कदाचिन्निवासपानीयद्रविणाद्यनेकात्मोपजीवनाभिनिवेश एतस्यां संसाराटव्यामितस्तत: परिधावति ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  कभी-कभी जीव रहने के लिए घर ढूंढना और अपने शरीर की देखभाल के लिए पानी तथा धन जुटाने के काम में लगा रहता है। इन विभिन्न आवश्यकताओं को जुटाने में संलग्न रहने से वह अन्य सब कुछ भूल जाता है और भौतिक अस्तित्त्व के जंगल में लगातार भागदौड़ करता रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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