श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 14: भौतिक संसार भोग का एक विकट वन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  5.14.3 
 
 
अथ च यत्र कौटुम्बिका दारापत्यादयो नाम्ना कर्मणा वृकसृगाला एवानिच्छतोऽपि कदर्यस्य कुटुम्बिन उरणकवत्संरक्ष्यमाणं मिषतोऽपि हरन्ति ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, इस भौतिक संसार में स्त्री, पुत्र आदि नामों से पुकारे जाने वाले परिवार वाले वास्तव में भेड़ियों और सियारों की तरह व्यवहार करते हैं। एक चरवाहा अपनी भेड़ों की रक्षा यथाशक्ति करता है, लेकिन भेडिये और लोमड़ियाँ उन्हें बलपूर्वक उठा ले जाते हैं। इसी प्रकार, यद्यपि एक कंजूस व्यक्ति अपने धन की रखवाली बहुत सावधानी से करना चाहता है, लेकिन उसके परिवार वाले उसकी सारी संपत्ति, उसके सतर्क रहते हुए भी, बलपूर्वक छीन लेते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.