अथ च यत्र कौटुम्बिका दारापत्यादयो नाम्ना कर्मणा वृकसृगाला एवानिच्छतोऽपि कदर्यस्य कुटुम्बिन उरणकवत्संरक्ष्यमाणं मिषतोऽपि हरन्ति ॥ ३ ॥
अनुवाद
हे राजन्, इस भौतिक संसार में स्त्री, पुत्र आदि नामों से पुकारे जाने वाले परिवार वाले वास्तव में भेड़ियों और सियारों की तरह व्यवहार करते हैं। एक चरवाहा अपनी भेड़ों की रक्षा यथाशक्ति करता है, लेकिन भेडिये और लोमड़ियाँ उन्हें बलपूर्वक उठा ले जाते हैं। इसी प्रकार, यद्यपि एक कंजूस व्यक्ति अपने धन की रखवाली बहुत सावधानी से करना चाहता है, लेकिन उसके परिवार वाले उसकी सारी संपत्ति, उसके सतर्क रहते हुए भी, बलपूर्वक छीन लेते हैं।