स यदा दुग्धपूर्वसुकृतस्तदा कारस्करकाकतुण्डाद्यपुण्यद्रुमलताविषोदपानवदुभयार्थशून्यद्रविणान्जीवन्मृतान् स्वयं जीवन्म्रियमाण उपधावति ॥ १२ ॥
अनुवाद
पूर्वजन्म में किये गए पुण्य कर्मों के कारण इस जन्म में मनुष्य को भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, लेकिन जब ये खत्म हो जाती हैं, तो वह धन-दौलत का सहारा लेता है, जो न तो इस जीवन में न ही अगले जीवन में उसके किसी काम आती हैं। इसलिए वह उन जीवित-मृत व्यक्तियों का सहारा लेना चाहता है, जिनके पास ये चीजें होती हैं। ऐसे लोग अपवित्र वृक्षों, लताओं और विषैले कुओं के समान हैं।