श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 14: भौतिक संसार भोग का एक विकट वन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  5.14.12 
 
 
स यदा दुग्धपूर्वसुकृतस्तदा कारस्करकाकतुण्डाद्यपुण्यद्रुमलताविषोदपानवदुभयार्थशून्यद्रविणान्जीवन्मृतान् स्वयं जीवन्म्रियमाण उपधावति ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  पूर्वजन्म में किये गए पुण्य कर्मों के कारण इस जन्म में मनुष्य को भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, लेकिन जब ये खत्म हो जाती हैं, तो वह धन-दौलत का सहारा लेता है, जो न तो इस जीवन में न ही अगले जीवन में उसके किसी काम आती हैं। इसलिए वह उन जीवित-मृत व्यक्तियों का सहारा लेना चाहता है, जिनके पास ये चीजें होती हैं। ऐसे लोग अपवित्र वृक्षों, लताओं और विषैले कुओं के समान हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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