क्वचिन्निगीर्णोऽजगराहिना जनो
नावैति किञ्चिद्विपिनेऽपविद्ध: ।
दष्ट: स्म शेते क्व च दन्दशूकै-
रन्धोऽन्धकूपे पतितस्तमिस्रे ॥ ९ ॥
अनुवाद
भौतिक जंगल में बद्ध आत्मा को कभी अजगर निगल लेता है या मसल देता है। ऐसे में ज्ञान और चेतना से रहित होकर वह वनों में शव के समान पड़ा रह जाता है। कभी-कभी अन्य विषैले सर्प भी आकर उसे काट लेते हैं। चेतनता न होने के कारण वह नारकीय जीवन के अंधेरे और गहरे गड्ढे में गिर जाता है, जहाँ से वापस निकलने की कोई उम्मीद नहीं रहती।