निवासतोयद्रविणात्मबुद्धि-
स्ततस्ततो धावति भो अटव्याम् ।
क्वचिच्च वात्योत्थितपांसुधूम्रा
दिशो न जानाति रजस्वलाक्ष: ॥ ४ ॥
अनुवाद
हे राजन, इस संसार रूपी जंगल के पथ पर घर, धन, परिजन आदि के चक्कर में फँसा व्यापारी सफलता की तलाश में इधर-उधर भटकता रहता है। कभी-कभी वासना के बवंडर के कारण उसकी आँखों पर पर्दा पड़ जाता है, अर्थात वह पत्नी के सौंदर्य, विशेषकर उसके मासिक धर्म के दौरान, के प्रति आकर्षित हो जाता है। इस कारण उसकी दृष्टि मंद हो जाती है और वह नहीं देख पाता कि उसे कहाँ जाना है और क्या करना है।