श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 12: महाराज रहूगण तथा जड़ भरत की वार्ता  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  5.12.3 
 
 
तस्माद्भ‍वन्तं मम संशयार्थं
प्रक्ष्यामि पश्चादधुना सुबोधम् ।
अध्यात्मयोगग्रथितं तवोक्त-
माख्याहि कौतूहलचेतसो मे ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  गुरुदेव, जिस किसी विषय पर भी मेरा संदेह रह गया है, उसके बारे में मैं बाद में आपसे पूछूँगा। किंतु अभी जैसा आपने आत्म-साक्षात्कार के लिए गूढ़ योग की शिक्षा दी है, उसे समझ पाना मेरे लिए बहुत कठिन है। कृपा करके उसे सरल ढंग से दोहराइए ताकि मैं उसे समझ सकूँ। मेरा मन बहुत जिज्ञासु है और मैं इसे भलीभाँति समझना चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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