श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 12: महाराज रहूगण तथा जड़ भरत की वार्ता  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.12.13 
 
 
यत्रोत्तमश्लोकगुणानुवाद:
प्रस्तूयते ग्राम्यकथाविघात: ।
निषेव्यमाणोऽनुदिनं मुमुक्षो-
र्मतिं सतीं यच्छति वासुदेवे ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  यहाँ जिन शुद्ध भक्तों का उल्लेख किया गया है, वे कौन हैं? शुद्ध भक्तों की सभा में, राजनीति और समाजशास्त्र जैसे सांसारिक विषयों पर चर्चा का कोई सवाल ही नहीं उठता। उनकी सभा में, केवल परम पुरुषोत्तम भगवान् की लीलाओं, उनके स्वरूप और उनके गुणों की चर्चा होती है। उनकी प्रशंसा की जाती है और उनकी पूजा पूरी श्रद्धा से की जाती है। ऐसे शुद्ध भक्तों की संगति में, ऐसे विषयों को लगातार श्रद्धापूर्वक सुनने से, वो व्यक्ति भी जो परम सत्य में मिल जाना चाहता है, वो भी अपने इस विचार को त्याग देता है और धीरे-धीरे भगवान वासुदेव की सेवा से जुड़ जाता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.