तो फिर परम सत्य क्या है? उत्तर है अद्वैत ज्ञान जो भौतिक गुणों के कल्मष से रहित है। वह मुक्तिप्रदायक है। वह अद्वितीय, सर्वव्यापी तथा कल्पनातीत है। उस ज्ञान की प्रथम प्रतीति ब्रह्म है। फिर योगियों द्वारा अनुभव किया जाने वाला परमात्मा है। जो बिना किसी कष्ट के उसे देखने का प्रयास करते है यह प्रतीति की दूसरी अवस्था है। अन्त में परम पुरुष में ही उसी परम ज्ञान की पूर्ण प्रतीति की जाती है। सभी विद्वान परम पुरुष को वासुदेव के रूप में वर्णन करते हैं, जो ब्रह्म, परमात्मा आदि का कारण है।