श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 12: महाराज रहूगण तथा जड़ भरत की वार्ता  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  5.12.1 
 
 
रहूगण उवाच
नमो नम: कारणविग्रहाय
स्वरूपतुच्छीकृतविग्रहाय ।
नमोऽवधूत द्विजबन्धुलिङ्ग-
निगूढनित्यानुभवाय तुभ्यम् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा रहूगण ने कहा—हे महात्मा, आप पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के समान हैं। आपकी कृपा से शास्त्रों के सभी विरोधाभास दूर हो गए हैं। आप ब्राह्मण के मित्र की वेशभूषा में अपने दिव्य और आनंदमय स्वरूप को छिपा रहे हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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