दु:खं सुखं व्यतिरिक्तं च तीव्रंकालोपपन्नं फलमाव्यनक्ति ।
आलिङ्ग्य मायारचितान्तरात्मास्वदेहिनं संसृतिचक्रकूट: ॥ ६ ॥
अनुवाद
सांसारिक मन जीव की आत्मा को ढँक कर उसे तरह-तरह के जीवों में ले जाता है। इसे संसार में आवागमन कहते हैं। मन की वजह से ही जीव को भौतिक दुख और सुख का बोध होता है। इस तरह से मोहवश मन अच्छे और बुरे कर्मों और उनके फल को पैदा करता है। इस तरह आत्मा बँध जाती है।