श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 11: जड़ भरत द्वारा राजा रहूगण को शिक्षा  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  5.11.6 
 
 
दु:खं सुखं व्यतिरिक्तं च तीव्रंकालोपपन्नं फलमाव्यनक्ति ।
आलिङ्‌ग्य मायारचितान्तरात्मास्वदेहिनं संसृतिचक्रकूट: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  सांसारिक मन जीव की आत्मा को ढँक कर उसे तरह-तरह के जीवों में ले जाता है। इसे संसार में आवागमन कहते हैं। मन की वजह से ही जीव को भौतिक दुख और सुख का बोध होता है। इस तरह से मोहवश मन अच्छे और बुरे कर्मों और उनके फल को पैदा करता है। इस तरह आत्मा बँध जाती है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.