तथैव राजन्नुरुगार्हमेध-वितानविद्योरुविजृम्भितेषु ।
न वेदवादेषु हि तत्त्ववाद:प्रायेण शुद्धो नु चकास्ति साधु: ॥ २ ॥
अनुवाद
हे राजन्, स्वामी और सेवक, राजा और प्रजा इत्यादि के संबंधों की बातें केवल भौतिक गतिविधियों की बातें हैं। वेदों में बताई गई भौतिक गतिविधियों में रुचि रखने वाले लोग यज्ञ करते हैं और भौतिक गतिविधियों पर ही श्रद्धा रखते हैं। ऐसे लोगों को आत्मिक उन्नति बिलकुल भी नहीं होती।