श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 10: जड़ भरत तथा महाराज रहूगण की वार्ता  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  5.10.4 
 
 
न वयं नरदेव प्रमत्ता भवन्नियमानुपथा: साध्वेव वहाम: । अयमधुनैव नियुक्तोऽपि न द्रुतं व्रजति नानेन सह वोढुमु ह वयं पारयाम इति ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे स्वामी, आप जानते हैं कि हम अपना काम बिल्कुल भी लापरवाही से नहीं करते। हम आपकी इच्छा के अनुसार निष्ठा से पालकी उठा रहे हैं। लेकिन यह आदमी, जिसे हाल ही में काम पर रखा गया है, वह तेज़ी से नहीं चल पा रहा है। इसलिए हम उसके साथ पालकी उठाने में असमर्थ हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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