श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 10: जड़ भरत तथा महाराज रहूगण की वार्ता  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  5.10.20 
 
 
स वै भवाँल्लोकनिरीक्षणार्थ-
मव्यक्तलिङ्गो विचरत्यपिस्वित् ।
योगेश्वराणां गतिमन्धबुद्धि:
कथं विचक्षीत गृहानुबन्ध: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  क्या यह सच नहीं है कि आप पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के अवतार कपिल देव के साक्षात् प्रतिनिधि हैं? मनुष्यों की परीक्षा लेने और यह देखने के लिए कि वास्तव में कौन मनुष्य है और कौन नहीं, आपने अपने आपको गूँगे तथा बहरे मनुष्य की भाँति प्रस्तुत किया है। क्या आप संसार भर में इसलिए नहीं इस रूप में घूम रहे? मैं तो गृहस्थ जीवन तथा सांसारिक कार्यों में अत्यधिक आसक्त हूँ और आत्मज्ञान से रहित हूँ। इतने पर भी अब मैं आपसे प्रकाश पाने के लिए आपके समक्ष उपस्थित हूँ। आप बताएँ कि मैं किस प्रकार आत्मजीवन में प्रगति कर सकता हूँ?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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