श्रीशुक उवाच
अथ सिन्धुसौवीरपते रहूगणस्य व्रजत इक्षुमत्यास्तटे तत्कुलपतिना शिबिकावाहपुरुषान्वेषणसमये दैवेनोपसादित: स द्विजवर उपलब्ध एष पीवा युवा संहननाङ्गो गोखरवद्धुरं वोढुमलमिति पूर्वविष्टिगृहीतै: सह गृहीत: प्रसभमतदर्ह उवाह शिबिकां स महानुभाव: ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा, हे राजन, इसके बाद सिंधु और सौवीर राज्यों के शासक रहूगण कपिलाश्रम जा रहे थे। जब राजा के मुख्य पालकीवाहक इक्षुमती नदी के तट पर पहुंचे तो उन्हें एक और पालकीवाहक की जरूरत पड़ी। इसलिए वे किसी की तलाश करने लगे और संयोग से उन्हें जड़ भरत मिल गये। उन्होंने सोचा कि यह युवक और बलवान है और इसके अंग-प्रत्यंग मजबूत हैं। यह बैलों और गधों की तरह भार ढोने के लिए उपयुक्त है। इस तरह सोचकर यद्यपि महात्मा जड़ भरत ऐसे काम के लिए बिल्कुल अनुपयुक्त थे, फिर भी पालकीवाहकों ने बिना किसी हिचकिचाहट के उन्हें पालकी ढोने के लिए बाध्य कर दिया।