नारद मुनि के अनन्य भक्त और समर्पित अनुयायी, महाराज प्रियव्रत ने किसी भी परिस्थिति में अपने सकाम कर्मों और योगबल से प्राप्त सभी ऐश्वर्य को नरक के समान माना, चाहे वह स्वर्गलोक हो, अधोलोक हो या फिर मानव समाज।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध पांच के अंतर्गत पहला अध्याय समाप्त होता है ।