श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 1: महाराज प्रियव्रत का चरित्र  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  5.1.39 
 
 
तस्य ह वा एते श्लोका:—
प्रियव्रतकृतं कर्म को नु कुर्याद्विनेश्वरम् ।
यो नेमिनिम्नैरकरोच्छायां घ्नन् सप्त वारिधीन् ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज प्रियव्रत ने जो किया वो भगवान् के अलावा कोई नहीं कर सकता। उन्होंने अपने रथ के पहियों की नोंक से सात समुद्र बनाए और रात के अँधेरे को मिटा दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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