श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 1: महाराज प्रियव्रत का चरित्र  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  5.1.3 
 
 
महतां खलु विप्रर्षे उत्तमश्लोकपादयो: ।
छायानिर्वृतचित्तानां न कुटुम्बे स्पृहामति: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  जो साधु महात्मा भगवान् के चरणों में शरण लेते हैं वे उनके चरणों की शीतलता से तृप्त होते हैं, उनका मन कभी भी परिवार के लोगों में नहीं लग सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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