श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 1: महाराज प्रियव्रत का चरित्र  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  5.1.22 
 
 
मनुरपि परेणैवं प्रतिसन्धितमनोरथ: सुरर्षिवरानुमतेनात्मजमखिलधरामण्डलस्थितिगुप्तय आस्थाप्य स्वयमतिविषमविषयविषजलाशयाशाया उपरराम ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  स्वायंभुव मनु ने भगवान ब्रह्मा की सहायता से अपने मनोरथ को पूरा किया। महर्षि नारद की अनुमति से उन्होंने अपने पुत्र को समस्त भूमण्डल के शासन का भार सौंप दिया और इस तरह स्वयं भौतिक कामनाओं के घोर और विषम सागर से मुक्ति प्राप्त कर ली।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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