श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 1: महाराज प्रियव्रत का चरित्र  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  5.1.21 
 
 
भगवानपि मनुना यथावदुपकल्पितापचिति: प्रियव्रतनारदयोरविषममभिसमीक्षमाणयोरात्मसमवस्थानमवाङ्‍मनसं क्षयमव्यवहृतं प्रवर्तयन्नगमत् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  इसके पश्चात् मनु ने विधिवत पूजा कर ब्रह्माजी को संतुष्ट किया। प्रियव्रत तथा नारद ने भी किसी प्रकार का विरोध किए बिना ब्रह्माजी की ओर देखा। प्रियव्रत से उसके पिता की मनौती स्वीकार करवाकर ब्रह्माजी अपने धाम सत्यलोक चले गए, जिसका वर्णन भौतिक मन तथा वाणी से परे है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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