श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 1: महाराज प्रियव्रत का चरित्र  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  5.1.19 
 
 
त्वं त्वब्जनाभाङ्‌घ्रिसरोजकोश-
दुर्गाश्रितो निर्जितषट्‌सपत्न: ।
भुङ्‌क्ष्वेह भोगान् पुरुषातिदिष्टान्
विमुक्तसङ्ग: प्रकृतिं भजस्व ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी ने आगे कहा - हे प्रियव्रत, जो भगवान कमल के फूल जैसी नाभि वाले हैं, उन भगवान के चरणकमल के पास शरण लेकर छह ज्ञान इंद्रियों पर विजय प्राप्त करो। तुम भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद लो, क्योंकि भगवान ने तुम्हें ऐसा करने का आदेश दिया है। इस तरह तुम भौतिक संसार से मुक्त हो जाओगे और अपने स्वभाविक कर्तव्यों का पालन कर पाओगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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