श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 1: महाराज प्रियव्रत का चरित्र  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  5.1.10 
 
 
भगवानपि भारत तदुपनीतार्हण: सूक्तवाकेनातितरामुदितगुणगणावतारसुजय: प्रियव्रतमादि पुरुषस्तं सदयहासावलोक इति होवाच ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा परीक्षित, क्योंकि ब्रह्माजी सत्यलोक से भूलोक पधारे थे, इसलिए नारद मुनि, राजकुमार प्रियव्रत और स्वायंभुव मनु आगे बढ़े और पूजन सामग्री अर्पित करते हुए वैदिक शिष्टाचार से उनका अभिनंदन किया। तब इस ब्रह्माण्ड के प्रथम पुरुष ब्रह्मा ने प्रियव्रत की ओर मुस्कान भरी करुणा का भाव से देखते हुए उनसे इस प्रकार कहा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.